Sunday, March 27, 2016

GHAZAL




लफ्ज़ लफ्ज़ लिखता रो रहा हूँ 
ग़ज़ल मैं आंसू पिरो रहा हूँ 
कलम में खून ए जिगर भरा है 
ग़ज़ल भी खून से भिगो रहा हूँ 
मिले है मुझको जख्म क्यू कर 
गमो के आंधी में जो रहा हूँ 
बस अब ना छेड़ो के मगन हूँ 
ग़ज़ल में जख्मो को खो रहा हूँ 
सकू पाने के वास्ते कुछ 
ग़ज़ल में खुद को डुबो रहा हूँ 
न कुछ भी "रस्क" जुबानी पूछो 
ग़ज़ल में हर दुख समो रहा हूँ 

Thursday, March 17, 2016

Maine kaha usse


मैंने उससे एक इशारा किया,
उसने सलाम लिख के भेजा !
मैंने पूछा तुम्हारा नाम क्या है ?
उसेन चाँद लिख के भेजा!
मैंने पूछा तुम्हे क्या चाहिए ?
उसने सारा आसमान लिख के भेजा !
मैंने पूछा कब मिलोगे ?
उसने कयामत की शाम लिख के भेजा !
मैंने पूछा किस से डरते हो ?
उसने मोह्हब्बत का अंजाम लिख भेजा !
मैंने पूछा तुम्हे नफरत किस से है ?
उसने मेरा ही  लिख के भेजा 

Tu bhi nahi

 गलतियों से जुदा तू भी नहीं, मैं भी नहीं। दोनों इंसान हैं , खुदा तू भी नहीं,मैं भी नहीं...... गलतफहमियों ने कर दी दोनों में पैदा दूरियां  वर...