"मन" आओ मिलकर कोई वजह ढूढ ले
अपने एक होने की
यु बिखरे बिखरे,
ना तुम अच्छे लगते हो, और ना ही मैं
उनसे पहली मुलाकात थी ,
वो सड़क के उस पार थी ,
वो मुझ से अनजान थी,
और में उससे बेखबर था !
आटे से सने उसके थे हाथ,
पता ही नहीं चला कब हो गए साथ,
वो उसकी बिखरी बिखरी सी जुल्फे!
वो हमारी पहली मुलाकात अहसास ,
कुछ तरह का था !
उसकी निगाहे हमें तलाश रही थी,
वो अपनी जुल्फे सम्भाल रही थी ,
और "मन" मैं खुद को !!
पहली मुलाकात का मंजर आज भी याद आता है
तुमको याद ही होगा
झील के किनारे बीते पल
कैसे भुला दूं मैं उन रातों को
वो वो तुम्हारा
मेरी बाहों में सिमटना
मेरे लबों को चूमना
बढ़ती धड़कने
कांपते होठ
झुकी निगाहे
वो गीला बदन
वो जुल्फो से टपकती बूंदे
वो बदन की गर्मी
तेरी सांसों की रफ्तार
और वो आहे
मुझे वो मंजर आज भी याद आता
कुछ ऐसे दर्द होते है जो , लफ्जों में बयाँ नहीं होते है !
जो जख्म बहुत गहरे होते है , जाहिर उनके निशां होते है !!
भूल भी जाये गर हम अपने गुनाहों को , पीछे फिर भी कदमो के निशाँ होते है !
दूर से जो लगते है आसमा जैसे, नजदीक से अक्सर वो धुँआ होते है !!
रहबर के जो फरमाबदार होते है. कामयाब अक्सर वो ही कारवां होते है
बनाते है जो खुबसूरत महलो को, उन्ही के अक्सर कच्चे मकान होते है
मुश्किल से मुश्किल मसले भी, "मन" दुआओ से अक्सर आसां होते है
कुछ ऐसे दर्द होते है जो , लफ्जों में बयाँ नहीं होते है !!