लफ्ज़ लफ्ज़ लिखता रो रहा हूँ
ग़ज़ल मैं आंसू पिरो रहा हूँ
कलम में खून ए जिगर भरा है
ग़ज़ल भी खून से भिगो रहा हूँ
मिले है मुझको जख्म क्यू कर
गमो के आंधी में जो रहा हूँ
बस अब ना छेड़ो के मगन हूँ
ग़ज़ल में जख्मो को खो रहा हूँ
सकू पाने के वास्ते कुछ
ग़ज़ल में खुद को डुबो रहा हूँ
न कुछ भी "रस्क" जुबानी पूछो
ग़ज़ल में हर दुख समो रहा हूँ
No comments:
Post a Comment