Friday, July 13, 2018

इन बाहों के घेरो से !




ना  जाने कब तुम मेरे ख्यालों से निकल कर ,
मेरे खवाबों में बस जाते हो ,
मैं तुम्हे सोचता ही रहता हूँ तन्हा तन्हा ,
और ना जाने तुम कब मुझे जुल्फों में कैद कर देते हो !
मैं तमाम उम्र क़ैद रहना चाहता हूँ ,इन जुल्फों में ,
ना जाने कब जुल्फों से निकाल  कर बाँहों में  घेर लेते हो ,
मुझे आजाद ना करो  इन बाहों के घेरो से !
मैं तमाम उम्र क़ैद रहना चाहता हूँ 
मुझे आजाद ना करो  इन बाहों के घेरो से !

1 comment:

दगा

माँगा था क्या तुम क्या दे रहे हो  मुझे दोस्त बन कर दगा दे रहे हो मुझे मेरा दुश्मन नहीं ढूंढ पाता मगर क्या करे तुम मारा पता दे रहे किनारे पर ...