लबों से लबों को छूने का असर,
ना पूछो होता है क्या वो गज़ब !
थरथराहट सी होती है तन में ,
जब लबों से छू जाते हैं लब!!
छूकर जब दूर होते हैं लब ,
जागती है कैसी प्यास अजब!
तरसते हैं वही जाम पीने को,
कब मिले थे लब से उनके लब !!
ऐसे में हो जाये बरसात अगर,
उफ्फ्फ्फ़ फिर तो ना रुका जाये अब!
ना दूर रह पाये फिर सनम से ,
अगर ऐसे में लब से मिल जाएँ लब!!
सिमट जाएँ आकर फिर हम उनमे,
खो जाएँ उनमे कुछ इस कदर !
ना होश रहे रस्मो रिवाज़ का ,
जब उनके लबों से मिल जाएँ लब!!
"रस्क" हो जाये हर मुराद उनकी पूरी,
बिखर जाऊं मैं उनके क़दमों पर !
ना रह जाये फिर कोई रस्म भी बाकि,
जब लब से मिल जाएँ उनके लब ...!!!
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