आओ तो कभी देखो तो जरा,
हम कैसे जिए तेरी खातिर !
दिन रात जलाये बैठे है,
आँखों के दिये तेरी खातिर !!
एक नाता तुझ से जोड़ लिया ,
सब अपनों से मुँह मोड़ लिया !
हम तन्हा होकर बैठ गए ,
सब छोड़ दिया तेरी खातिर !!
कुछ आहें थी कुछ शिकवे थे ,
होंठो पे उन्हें आने ना दिया !
जो आँख के रस्ते भी आये ,
सब अश्क पिए तेरी खातिर !!
बदनाम ना तू हो जाये कहीं ,
इन अपनी जफ़ाओ के बदले !
इन तेरे गमो पे खुशियो के ,
सो परदे किये तेरी खातिर !!
मेरे खून ये जिगर का दाग़ कही ,
दामन पे तेरे ना लग जाये !
एक अहदे वफ़ा के धागे से ,
सब जख्म सिये तेरी खातिर !!
हम सब कुछ अपना हर गए ,
बर्बाद हुए पर तू न मिला !!
"रस्क" बेकार जहाँ में जीने के
इल्जाम लिए तेरी खातिर !!
goooooood
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