Wednesday, August 19, 2015

Rask Ye Ashk


आओ तो कभी देखो तो जरा, 
हम कैसे जिए तेरी खातिर !
दिन रात जलाये बैठे है, 
आँखों के दिये तेरी खातिर !!

एक नाता तुझ से जोड़ लिया ,
सब अपनों से मुँह मोड़ लिया !
हम तन्हा  होकर बैठ गए ,
सब छोड़ दिया तेरी खातिर !!

कुछ आहें थी कुछ शिकवे थे ,
होंठो पे उन्हें आने ना दिया !
जो आँख के रस्ते भी आये ,
सब अश्क पिए तेरी खातिर !!

बदनाम ना तू  हो जाये कहीं ,
इन अपनी जफ़ाओ के बदले !
इन तेरे गमो पे खुशियो के ,
सो परदे किये तेरी खातिर !!

मेरे खून ये जिगर का दाग़ कही ,
दामन  पे तेरे ना  लग जाये !
एक अहदे वफ़ा के धागे से ,
सब जख्म सिये तेरी खातिर !!

हम सब कुछ अपना  हर गए ,
बर्बाद हुए पर तू न मिला !!
"रस्क"  बेकार जहाँ में जीने के 
इल्जाम लिए तेरी खातिर !!


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