Tuesday, June 3, 2025

गैरो की बाहों में



 गैरो की बाहों में  तेरे लिपट जाने  के बाद

चंद आँखें रो रही हैं मेरे मर जाने के बाद


बस यही तो सोच के मैं टूट कर बिखरा नहीं

क्यूँ समेटेगा मुझे कोई बिखर जाने के बाद


रंगमंच हैं हैरान जब उलझी ज़ुल्फ़ें देख कर

ढाएगी अब तू क़यामत बन-सँवर जाने के बाद


थकान तेरा मुक़द्दर बन गई हैं आज-कल

ये सज़ा है मेरी नज़रों से उतर जाने के बाद


जा रहे हो छोड़ कर  उसे तो सोच लो

फूल में लौटी है कब ख़ुश्बू बिखर जाने के बाद


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