गैरो की बाहों में तेरे लिपट जाने के बाद
चंद आँखें रो रही हैं मेरे मर जाने के बाद
बस यही तो सोच के मैं टूट कर बिखरा नहीं
क्यूँ समेटेगा मुझे कोई बिखर जाने के बाद
रंगमंच हैं हैरान जब उलझी ज़ुल्फ़ें देख कर
ढाएगी अब तू क़यामत बन-सँवर जाने के बाद
थकान तेरा मुक़द्दर बन गई हैं आज-कल
ये सज़ा है मेरी नज़रों से उतर जाने के बाद
जा रहे हो छोड़ कर उसे तो सोच लो
फूल में लौटी है कब ख़ुश्बू बिखर जाने के बाद
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