" रस्क " एक मीठी सी शिकायत
मुस्सील बस ये सिलसिला है,
हर दौर में मुझे विष मिला है,
पला हूं में हादसों की परवरिश में,
जिंदा हु ये मेरा हौसला है,
उड़ू तो सामने आसमान है,
रुकी तो शाख पर घोंसला है,
पंख दिए है तो परवाज भी दे,
उड़ सकू मैं हौसलों की उड़ान दे
दो नावों पर पाँव पसारे, ऐसे कैसे? वो भी प्यारा हम भी प्यारे, ऐसे कैसे? सूरज बोला बिन मेरे दुनिया अंधी है हँसकर बोले चाँद-सितारे, “ऐसे कैसे...
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