टूटे हुए कुछ दिलों के , मैं टुकड़ों को उठा कर,
लौट आया हूँ , एक दर्द को , सीने में दबा कर !
फिर जोड़ के , पढता हूँ , उसी खत के मैं टुकड़े ,
आया था अभी जिन को, हवाओं में उड़ा कर !
इक ख़्वाब, हसीं देख ले, तू मेरी नज़र से,
लाया हूँ, उसे आँख की, पुतली में सजा कर !
फिर जवाब ऐ जुदाई, न मुझे, आँख देखा दे,
इस खौफ ने, शब भर मुझे, रखा है जगा कर !
ऐ "रस्क" , वो ही हम से, निगाहों को चुराए ,
लाए थे, जिसे दुनिया की, नज़रों से, चुरा कर !!
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