Friday, May 30, 2025
मन नहीं करता
कभी होठों को होठों को पकड़ से छोड़ने का मन नहीं करता,
कभी खुले शीशे पर पर्दे चढ़ाने का मन नहीं करता,
कभी सुखी चादरें बदन के लिपटने से भीग जाती है,
यार उस रात बत्तियां जलने का मन नहीं होता,
आ प्यार करके दिखा
ना उठा तू नजर किसी गैर की तरफ
ना मैं किसी औरत को अपनी आंखों से देखू,
एक भी नहीं तेरे बराबर का,
तुझे मिलकर अजूबे में सातों देखूं,
तेरा रूठना तेरा मानना तेरे गुस्से का सामना,
तेरी सूरत भोली मैं बांधू हूं तेरी चोली,
तेरे माथे को चुमु, तेरी जांघों को सहलाऊ,
तेरे उतारू अगर कपड़े,तेरे को मैं ही पहनाऊं,
तुझे प्यार में मैं दूं दर्द तेरे में नखरे उठाऊ,
तेरे टूटे हुए बालों के में कतरे उठाऊ,
कभी तुझे पूजु खुद सा, कभी तुझे गले लगाऊं,
कभी आहिस्ता आहिस्ता तो कभी रफ्तार बढ़ाऊं,
कभी तेरे सीने की चोटियों पर अपने दांत गड़ाऊ,
दुनिया वालों के सामने इज्जत बिस्तर पर कैसे करते हैं,
आ प्यार करके दिखा
Thursday, May 29, 2025
तुमने नहीं देखा,
उसके होठों के किनारों को तुमने नहीं देखा
एक गाढ़ी लकीर से मानो, खेलने के लिए मैदान मुहैया कराया हो उसने
होठों की सूखी दरारों में रेतीली लारों में,
सुबह की रौशनी में उसके थरथराते होठों तुमने नहीं देखा,
उसके उठते ही उसके बातों की महक,
बगलो में उगे महीन बालों को,
गर्म रातों में चिप चिपाते ख्यालों को,
तुमने नहीं देखा,
दोपहर में उसकी बातें की खिलखिलाहट,
ओर उसके गर्दन का तिल,
बेचैनी में तड़फता दिल,
तुमने नहीं देखा,
कूलर की हवा में उड़ते उसके बाल,
उसकी गहरी काली आंखों,
उस की आंखों के गहराई को,
तुमने नहीं देखा,
मुझे महसूस कर सिर्फ़
मिल कभी बारिश में भीग कर कभी,
मेरे कोलर खींच कर नजदीक कर मुझे,
Friday, May 23, 2025
मुक्मल नहीं
रुको जरा सुन लो जरा ,यु आना मुक्मल नहीं,
जो थी कल, पल दो पल तेरी हँसी मुक्मल नहीं,
मुक्मल नहीं है ये पन्ने किताबी, जो आधे भरे है और आधे है खाली,
मुक्मल नहीं है ये आँखे शराबी,आधी है मुंदी और आधी है सवाली,
रुको जरा सुन लो जरा ,यु आना मुक्मल नहीं,
जो थी कल, पल दो पल तेरी हँसी मुक्मल नहीं,
मुक्मल नहीं ये जिन्दगी ,
जो ना मिले तेरे रूबरू, मुक्मल नहीं ये ख़वाब भी,
जो पूरा ना हो ,पर मांगे ये तुझसे की,
रुको जरा सुन लो जरा ,यु आना मुक्मल नहीं,
Wednesday, May 21, 2025
छूने से
मेरे याद करने पर तुझे ना आये तुझे हिस्किया ,
मेरे छूने पर आये ना तुजे सिसकियाँ,
तू खड़ा मेरे सामने और बाँहों में ना भरे,
मेरे बिना बिस्तर पर तू आहे ना भरे,
तू तरस जाये मुझे सीने से लगाने के लिए,
तेरे तरस जाये लब मेरी जुबा को पीने से,
तेरी कमर तरस जाये मेरी पकड़ के लिए,
तेरी गरदन रहे बेचैन मेरी उंगुलिया की जकड के लिए,
तेरी नाभि, तेरे पैर, तेरी याद मुझे टांगे करे,
जिन पे रख कर तू चीखती थी मेरे कांधे याद तेरी जांघे करे,
बेशक निकल मुझे दिल से मगर जिस्म से निकालेगी कैसे,
तेरे बदन के हर हिस्से मेरे लिए तुजसे मेरे लिए मांगे करे
बदन
Monday, May 19, 2025
तुझे अपना लिख दूं
जो झूठ लिखूँ, तो तुझे अपना लिख दूँ... जो सच लिखूँ, तो खुदको तेरा लिख दूँ...
जो हक़ीक़त लिखूँ, तो ये इश्क़ एक तरफा लिख दूँ...
जो ख़्वाब लिखूँ, तो ये इश्क़ मुकम्मल लिख दूँ...
जो मौक़ा मिले लिखने का, तो मेरी क़िस्मत में तेरा नाम लिख दूँ...
जो तक़दीर लिखूँ, तो अपने हिस्से में तेरा प्यार लिख दूँ...
जो क़िस्मत लिखूँ, तो तुझे अपना लिख दूँ मैं लिखूँ तो क्या लिखूँ, ना लिखूँ तो क्या ना लिखूँ?..
कभी रूहानी लिखूँ, कभी जिस्मानी लिखूँ... मैं हर अल्फ़ाज़ में तुझे अपना लिख दूँ..
Saturday, May 17, 2025
Tanhai
छाते के नीचे भीगी थी तन्हाई,
पर उस दिन... पास थी मेरी परछाई।
उसकी सांसें धड़कनों में उलझीं रहीं,
कुछ लफ़्ज़ थे, जो कहे नहीं गए... मगर रह गए कहीं।
हाथ थामे थे, पर वादा नहीं किया,
पलकों पे रखा प्यार... पर इज़हार नहीं किया।
बारिश गिरती रही, ज़मीन चुप थी,
और दिल..? वो धड़क रहा था बस उसकी धड़कन के साथ-साथ
वो पल... जब भी याद आता है,
हर बूँद में बस उसका नाम गुनगुनाता है।
ना आवाज़ थी, ना शोर था कोई,
बस इश्क़ था — जो बह रहा था चुपचाप, हम दोनों के बीच कहीं।
Thursday, May 15, 2025
Kab।marunga
मुझे मालूम है मैं मरूंगा,
चिंता इस बात की है की मौत से मैं डरूंगा कब,
और सोचा था किसी दिन उससे दिल की बात करूंगा,
अब जब मरने वाला हूं तो उससे बात करूंगा कब,
मुझे उस रात को वो तुम्हारे मखमली हाथ को छूना नहीं था,
तुम्हें ही गले लगा कर तुम्हारे लिए ही रोना नहीं था,
मैं जानता हूं, कि मेरे मन का वहम, रात का कभी सच ना होने वाला सपना था,
पर कुछ पल के लिए ऐसा लगा कभी अपना न होने वाला शख्स ,
उस रात को अपना था,
फिर क्या हुआ "रस्क",
फिर क्या हुआ सपना था, टूट गया ,पहले सच में रूठा था ,
अब सपने में भी रूठ गया,
उसका यूं ही मुझसे रूठ जाना मुझको मुनासिब सा लग नहीं,
उसको मैं आवारा लगा उसके पीछे पड़ा कोई आशिक लगा नहीं,
अच्छा, वो आखिरी दिन उसने मुझसे शर्त रखी ,
तुम्हें मुझे भूलना पड़ेगा मैं तुम्हें याद नहीं रखूंगी,
मैं नजरअंदाज कर दूंगी, तुमको निकलोगे कहीं से मेरी जान
मुझे मालूम है मैं मरूंगा कब,
ठंडी हवा
ठंडी हवा के झोंके चलते है हल्के हल्के,
ऐसे में दिल ना तोड़ो वादे ना करो कल के,
चलते है वो भी हमसे तेवर बदल बदल के
जिनको हमने चलना सिखाया सम्भल सम्भल के,
शाकी ने मुझको आज ऐसी नज़र से देखा,
मोसम हुआ गुलाबी, रंगीन जाम छलके,
बिस्तर के सिलवटों से महसूस हो रहा है,
किसी ने दम तोड़ा है करवट बदल बदल के!
Wednesday, May 14, 2025
कुछ तो लिखूं
हाथों में आई पेन तो आज सोचा कुछ तो लिखूं,
फिर आई तेरी याद तो फिर सोचा कुछ तो लिखूं,
फिजा में यूं चिनार के पत्तों की तरह,
गिरा था में टूटकर बादलों की तरह,
आज दोबारा याद आया वो मौसम,
तो सोचा कुछ तो लिखूं,
बदलते वक्त को देखा है मैंने अपनी आंखों से,
तुझे देखा है मैंने किसी ओर को बाहों में,
तेरी बेवफाई याद आई तो सोचा कुछ तो लिखूं,
Tera naam
अफसोस
या किस बात को लेकर मेरे मन में उलझन है, कौन-सी बात में बार-बार सोच रहा हूँ...
तुम्हें तब हर बार यही प्रतीत हुआ कि शायद मैं तुमसे बहस कर रहा हूँ,
या कोई अनचाही लड़ाई छेड़ना चाहता हूँ।
पर वास्तविकता तो ये थी कि
मैं बस इतना चाहता था कि तुम समझो...
कि मेरे भीतर क्या चल रहा है,
मैं किन भावनाओं से गुज़र रहा हूँ।
कभी-कभी इंसान लड़ना नहीं चाहता,
वो सिर्फ चाहता है कि कोई उसके मन की आवाज़ सुने...
बिना उसे गलत समझे।
मगर, काश, किंतु, परन्तु,अफसोस
Tuesday, May 13, 2025
Monday, May 12, 2025
मना मुझको ..
कुछ देर अपने कदमों में बिठा मुझको
में रूठी हूं, मना मुझको ..
जो लिखा था कल रात जाग कर तूने
वो शायरी मोहब्बत का सुना मुझको....
बता कोई किस्सा , हीर , रांझे का
इश्क़ है सच में तो दिखा मुझको ...
अगर मिलता है सुकून डूब कर उसमें
तो फिर खुद मैं आज डूबा मुझको...
बन चुका हैं जिस्म मेरा एक राग
तू साज की तरह बजा मुझको...
जिस इश्क़ को लोग कहते हैं जहर
वो आज अपने हाथ से पिला मुझको...
कुछ देर अपने कदमों में बिठा मुझको
मैं रूठी हूं मना मुझको ....
Sunday, May 11, 2025
बारिश
उनको बारिश पसंद थी,
मुझको सपनों वो,
उनको हंसना पसंद था,
मुझको हंसते हुए वो,
उनको बोलना पसंद था,
मुझको बोलते हुए वो
उनको शाम पसंद थी
मुझको शाम में टहलते हुए वो,
उनको खुशबू पसंद थी
मुझको खुशबू में महके वो,
उनको हवाएं पसंद थी
मुझको हवाओं में आंचल लहराते हुए वो,
उनको जुल्फे पसंद थी
मुझको जुल्फे लहराए वो
उनको चांद पसंद था,
मुझको चांद की चांदनी में नहाए वो,
उसको कभी में पसंद नहीं था,
मुझको पसंद थे सिर्फ वो!
Saturday, May 10, 2025
आदत
हमें रात भर जगने की आदत हो गई है,
लगता है हमें भी तुमसे मोहब्बत हो गई है...!!!
तेरा नाम सुनकर ये दिल मेरा नहीं रहता,
इसे भी तुझसे इस क़दर उल्फत हो गई है...!!!
उफ़! ये मोहब्बत हैं या कोई जादू का नशा ,
बस तेरा ही ज़िक्र करने की आदत हो गई है....!!!
Friday, May 9, 2025
भूल
चर्रर्र... दरवाज़े पर कोई आहट सी महसूस हुई तो एक झटके में उसने ताहिर का हाथ
अपने कंधे से झटक दिया. ‘‘...लगा जैसे कोई दरवाज़े की ओट में खड़ा हो!’’
‘‘अरे यार आओ न ! मूड मत ख़राब करो... वहम है तुम्हारा...’’
‘‘...हम्म्म पर डर तो रहता ही है. वैसे दरवाज़ा तो लॉक है...’’ शायद यह शब्द माया
ने अपना ही वहम दूर करने के लिए कहे थे, लेकिन उसका मन शंका से घिर गया.
फिर उसे पदचाप
भी सुनाई दी. इस आवाज़ से आतंकित हो उठी थी वह. शायद कुछ टूटा था. अगले ही पल वो ताहिर
को खुद से दूर धकेलती हुई, बाहर की ओर दौड़ी !
हां, मेरा शक़ सही
था. नितिन ही हैं, पर इस वक़्त तो वो अपने ऑफ़िस में होते हैं... उफ़्फ़! अब
क्या होगा? कहीं उन्होंने...नहीं, नहीं.. हे ईश्वर! मैं ख़ुद ही अपने संसार को बिखेर रही
थी... मौक़े की नज़ाकत समझकर ताहिर ने भी खिसकने में ही भलाई समझी.
माया के मन में
आतंक की तीव्रता इतनी प्रचंड हो गई कि वह वहीं बुत बन गई! हाथ-पैर जैसे सुन्न होते
जा रहे थे. धीरे-धीरे माया की स्थिति ख़राब होती गई. डबडबाई आंखों से झरने बहने
लगे तो सिसकियां विलाप में बदल गईं.
कैसे वह इतना
अनियंत्रित हो सकती है? क्या करने जा रही थी वो? नितिन को खोने के डर से
उसका दम घुटा जा रहा था! घंटों मन में तूफ़ान हलचल करता रहा.
उसे याद आ रहा
था वो अपने प्रेमी नितिन से कितना प्यार करती थी. जैसे जैसे मुलाकातों को समय
बीतता गया प्यार का यह स्रोत धीमा होते-होते खो-सा गया. इसकी कोई बड़ी वजह तो नहीं
थी...बस, छोटी-छोटी बातें थीं, जैसे: नितिन का अपने काम में व्यस्त से व्यस्ततम होते जाना,
सामान्य-सी
बातों को भी खीझ कर कह देना, एक ही बात को बार-बार कहने पर भी उसे भूल जाना, उसके बन संवरकर
आने पर न तो इस ओर ध्यान देना और ना ही कोई तारीफ़ करना. जीवन में जैसे कुछ नया और
रूमानी घटित ही नहीं हो रहा था. एक ही ढर्रे पर चलता हुआ जीवन...उकताने लगी थी वह.
जब से नया काम सूरी
हुआ है नितिन ऑफ़िस में व्यस्त और वह ऑफिस के काम के हमारे बीच की अंतरंगता नाममात्र की ही बची
रही थी उनके बीच. इसी बीच अपने साथ काम करने वाले ताहिर का मौन आमंत्रण उसे अपनी
ओर खींचता चला गया. चाहकर भी वह उसके बारे में सोचना बंद नहीं कर पाती थी, क्योंकि वह जो
भी पहने उसकी जी भर कर तारीफ़ करता था ताहिर. उसके मुंह से कोई बात निकलती नहीं थी
कि ताहिर उसे पूरा करने की शुरुआत कर देता. प्रेमी की ओर से मिली रिक्तता यूं भर
रही थी. और आज... यदि नितिन न आया होता तो... तो शायद वह एक और सीमा लांघ जाती...
मन में उठे
तूफ़ान को माया रोक नहीं पा रही थी. उसने तो बहुत कोशिश भी की थी नितिन को यह
बताने की कि उन दोनों को ज़्यादा समय साथ बिताना चाहिए पर... बुत बनी बैठी माया को
आज किसी चीज़ की जल्दी नहीं है... न तो फटाफट खाना पकाने की, न वॉशिंग मशीन से कपड़े
निकालकर सुखाने की, न घर साफ़ करने की और न किसी से बात करने की.. वह तो आज बस,
नितिन की हो
जाना चाहती...अपने नितिन की, जिसकी होते हुए भी उससे दूर हो गई थी...
समय काटे नहीं
कट रहा था. और वो इस उहापोह में थी कि क्या कहेगी नितिन से? आख़िर उसने सोचा,‘नितिन की दी हर
सज़ा क़ुबूल होगी उसे, पर वह अपना घर बिखरने नहीं देगी.’ यह तय करते ही माया ने नितिन
के ऑफ़िस जाने का निर्णय ले लिया. शहर का कारोबारी नितिन अपने ऑफ़िस में बैठा अपने लैपटॉप पर काम
कर रहा था. माया को अचानक आया देख उसने पूछा,‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है?’’
यह पूछकर उसने
अपनी नज़रें फिर लैपटॉप पर टिका दीं.
नितिन को यूं
शांत देखकर माया को और भी बेचैनी होने लगी.
‘‘तुम्हें कुछ
कहना है मुझसे?’’ माया ने पहल की.
‘‘नहीं तो...किस
बारे में?’’ पहले की तरह ही काम करता रहा वह.
‘‘वो...सुबह...” माया
आगे बोल ही नहीं पाई. दिल डूबा जा रहा था उसका. उसने मन ही मन सोचा कहीं यह तूफ़ान
आने से पहले की शांति तो नहीं?
‘‘ओहहह... हां,
सॉरी, सुबह जल्दी में
था. एक ज़रूरी मीटिंग थी इसलिए तुम पर ख़ामख़ां नाराज़ हो गया था,’’ नितिन ने काम
करते करते ही कहा.
‘‘नहीं, मैं उसके बाद
की बात कर रही हूं. सॉरी...वो...’’ आंसू आंख की कोरों पर उतर आए माया के.
वो आगे कुछ
कहती इससे पहले ही दरवाज़े पर नितिन के एक एम्प्लॉई ने दस्तक दी और वह रुक गई.
एम्प्लॉई के जाते ही नितिन ने कहा,‘‘सॉरी? क्यों? तुम्हारी भी क्या ग़लती, जब प्रेमी लापरवाह हो तो यह
तो होगा ही.’’
इतना सुनते ही माया
रोने लगी. ‘‘माफ़ कर दो मुझे...मैं...मैं...’’
‘‘माफ़? भई क्यों ?
इन बातों के
लिए...इन छोटी-छोटी सी बातों के लिए माफ़ी?’’ नितिन ने उसकी बात बीच में
ही काट दी.
‘‘पर...’’
‘‘पर क्या?
इट्स ओके. जो
तुम्हें सही लगा, तुम ने किया.’’
‘‘पर मैं...कहना
चाह रही थी कि...वो...जब तुम आए...उस समय...’’
‘‘मतलब तुम्हें
पता चल गया कि मैं आया था...’’ नितिन ने माया की तरफ़ निगाह भर देखा तो माया डर
गई. ‘‘असल में मैं आया तो था, पर एक अर्जेंट कॉल आ गया तो घर के अंदर आए बिना ही चला
गया... उन्हीं के काम में लगा हुआ हूं,’’ नितिन ने बात पूरी की.
अब तक नज़रें झुकाए खड़ी थी माया. यह सुनते ही उसने नितिन के चेहरे की ओर देखा.
नितिन अब भी अपने लैपटॉप में तल्लीन था. पर माया को तो जीवन मिल गया था. अब जाकर
उसकी जान में जान आई. पर उसका खिन्न मन अब कहां आपे में रहनेवाला था. आंखों में
आंसू की बड़ी-बड़ी बूंदें लिए वो नितिन की ओर बढ़ी और उसके गले लग कर सिसकने लगी.
‘‘ये क्या है?’’
नितिन आश्चर्य
से बोला.
‘‘कुछ नहीं,
थोड़ा-सा प्यार,’’
यह कहते
हुए माया ने
धीरे से नितिन के गाल पर किस कर दिया.
‘‘अरे! ये क्या
कर रही हो? ऑफ़िस है यह...’’
‘‘तुम ही हमेशा
बोलते थे ना कि, प्यार के बाद कभी
भी मैंने तुम्हें प्यार से सबके सामने गले नहीं लगाया. तो लो आज तुम्हारी इच्छा
पूरी कर दी. अब दोबारा मत बोलना कि मैं तुम्हारी बात नही सुनती.’’ माया का चेहरा
अचानक खिल गया था. माया का सालों पुराना, शरारतभरा रूप देखकर नितिन के चेहरे पर
रूमानियत आ गई. उसे कभी नहीं लगा था कि माया सब के बीच कभी ऐसा कुछ कर जाएगी.
मामूली-सी तो कहासुनी हुई थी सुबह. उसे समझ नहीं आया कि कैसे रिऐक्ट करे. उसने माया
का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बोला,‘‘सब ठीक है ना?’’
अचानक नितिन ने
लैपटॉप शटडाउन किया और बोला,‘‘चलो चलते हैं. आज डिनर बाहर करेंगे.’’
जब नितिन कार
पार्क करके रेस्तरां के अंदर आया तो डाइनिंग टेबल पर छोटा-सा केक और वाइन की बॉटल
देखकर उसने कहा,‘‘भई, ना तो आज किसी का बर्थ डे है और ना ही सालगिरह तो आख़िर आज
है क्या, जो हमारी जान इतनी रोमैंटिक हो रही हैं?’’
‘‘आज का ये पल
सिर्फ़ मेरा और तुम्हारा है.’’
‘‘अच्छा, ऐसा क्या हुआ?
झगड़े तो पहले
भी हुए हैं हमारे बीच. पर आज इसका परिणाम इतना अलग क्यों?’’
‘‘भूल गए ना?
आज ही के दिन,
हमने एक दूसरे
को पसंद किया था! और तुमने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि मैंने आज तुम्हारे
पसंद के सलवार सूट पहनी है. और तो और तुमने मेरी बिंदी भी नहीं देखी. तुम्हें तो
मेरा अलग अलग स्टाइल की बिंदी लगाना बहुत पसंद है ना?’’ बच्चों की तरह शिकायत किए
जा रही थी माया.
‘‘अच्छा जी,
तो असल बात यह
है. तभी आज इतना प्यार आ रहा है. मैं सोच तो रहा था कि कुछ अलग लग रही हो तुम
आज...पर कहा नहीं. हम्म्म... इतने साल हो गए. पहले मुझे याद रहता था, पर
फिर...ज़िंदगी की इस आपाधापी में सब भूल गया. अच्छी बात ये है कि तुम्हें तो याद
रहा...’’
‘‘तुमने मुझपर
ध्यान देना छोड़ दिया तो अब सोचा है, क्यों न मैं ही तुमपर ज़्यादा ध्यान देने लगूं?’’
कहते कहते माया
का गला रुंध गया.
‘‘कैसे निकल जाता
है न वक़्त, पता ही नहीं चलता. प्यार , जॉब... फिर अपना काम और देखो 12 साल हो गए
और... माया, मैं सब कुछ तुम्हारे लिए ही तो करता हूं. सच्ची बताना, तुम मेरे साथ ख़ुश तो हो न?’’
नितिन ने प्यार
से अपना हाथ माया के हाथ पर रखा तो माया रोने लगी. बोली,‘‘आज से मैं तुम्हें कभी
परेशान नहीं करूंगी और ना ही लड़ूंगी. पहले तो हम तुम एक दूसरे का ध्यान रखते थे,
पर धीरे-धीरे
सब छूट गया. तुम्हें और मुझे कुछ याद रहा तो सिर्फ़ अपनी अपनी ज़िम्मेदारी. इस सब
में हम एक-दूसरे को भूल ही गए. तुम जैसे कि मेहमान की तरह हो गए... मैं इतना उलझ
गई कि... और जो कभी मैंने अपना ग़ुस्सा या फ्रस्ट्रेशन तुम पर निकाला भी तो तुम
उसे सुनने या मुझे समझाने के बजाय चुप रहने लगे. फिर... मैं कभी...परेशान हो कर
रोती तो तुम करवट बदल कर सो जाते. पर इस बार मैं इसे अलग तरीक़े से संभालूंगी.
तुमको पता है न मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं रह सकती? हम दोनों केवल दोस्त हैं
इसलिए नहीं, बल्कि एक-दूसरे से प्यार करते हैं इसलिए एक छत के नीचे रह रहे हैं, है ना? तो मैंने सोचा
और ख़ूब सोचा कि इस बार मैं पहल करूंगी और अब तुमसे कोई शिकायत नहीं करूंगी.’’
‘‘अरे छोड़ो इन बातों को. आज से लाइफ़ फिर से एंजॉय करते हैं. चलो केक काटो. आओ
नई शुरुआत करते हैं,’’ नितिन के चेहरे पर पहले जैसी ताज़गी थी आज.
‘नितिन ने कहा,‘‘हां, बिल्कुल. आप तो
सबसे ख़ास हैं. हमारी लाइफ़ लाइन हैं.’’
Thursday, May 8, 2025
Wednesday, May 7, 2025
अहसास
मैं तुझे दिखूँ, न दिखूँ"...
मुझे अपने अहसासों में महसूस करना तुम...
मैं तुझे लिखूँ न लिखूँ"...
मुझे शब्दों में ही पढ़ लेना तुम...
नजदीक हूं तेरे दिल के इतना,
अपनी धड़कनों में मेरी धड़कनों को सुन लेना तुम...
प्यार में दगा
मुझे प्यार में तुम दगा दे रहे हो ,
माँगा था क्या तुम क्या दे रहे हो !
मुझे मेरा दुश्मन नहीं ढूढ पता,
मगर क्या करे तुम पता दे रहे हो !
किनारे पर लाकर किश्ती डुबो दी ,
खड़े दूर तुम अब दुआ दे रहे हो !
रकीबों ने तो मेरे घर जलाया ,
आकर तुम भी हवा दे रहें हो !
ऐसे कैसे?
दो नावों पर पाँव पसारे, ऐसे कैसे? वो भी प्यारा हम भी प्यारे, ऐसे कैसे? सूरज बोला बिन मेरे दुनिया अंधी है हँसकर बोले चाँद-सितारे, “ऐसे कैसे...
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दो नावों पर पाँव पसारे, ऐसे कैसे? वो भी प्यारा हम भी प्यारे, ऐसे कैसे? सूरज बोला बिन मेरे दुनिया अंधी है हँसकर बोले चाँद-सितारे, “ऐसे कैसे...
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बहुत खूबसूरत हो तुम कभी जो मैं कह दूं कि मोहब्बत है तुमसे मुझे गलत मत समझना क्योंकि मेरी जरूरत हो तुम नजर से जमाने की खुद को बचाना किसी ...