उसके होठों के किनारों को तुमने नहीं देखा
एक गाढ़ी लकीर से मानो, खेलने के लिए मैदान मुहैया कराया हो उसने
होठों की सूखी दरारों में रेतीली लारों में,
सुबह की रौशनी में उसके थरथराते होठों तुमने नहीं देखा,
उसके उठते ही उसके बातों की महक,
बगलो में उगे महीन बालों को,
गर्म रातों में चिप चिपाते ख्यालों को,
तुमने नहीं देखा,
दोपहर में उसकी बातें की खिलखिलाहट,
ओर उसके गर्दन का तिल,
बेचैनी में तड़फता दिल,
तुमने नहीं देखा,
कूलर की हवा में उड़ते उसके बाल,
उसकी गहरी काली आंखों,
उस की आंखों के गहराई को,
तुमने नहीं देखा,
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