" रस्क " एक मीठी सी शिकायत
कभी होठों को होठों को पकड़ से छोड़ने का मन नहीं करता,
कभी खुले शीशे पर पर्दे चढ़ाने का मन नहीं करता,
कभी सुखी चादरें बदन के लिपटने से भीग जाती है,
यार उस रात बत्तियां जलने का मन नहीं होता,
मैंने मोतियों सा पिरोया अपनी मोहब्बत को, मगर गलती से धागा कच्चा चुन लिया मैंने
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