Friday, May 30, 2025

मन नहीं करता




 

कभी होठों को होठों को पकड़ से छोड़ने का मन नहीं करता,

कभी खुले शीशे पर पर्दे चढ़ाने का मन नहीं करता,

कभी सुखी चादरें बदन के लिपटने से भीग जाती है,

यार उस रात बत्तियां जलने का मन नहीं होता,


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