" रस्क " एक मीठी सी शिकायत
कभी होठों को होठों को पकड़ से छोड़ने का मन नहीं करता,
कभी खुले शीशे पर पर्दे चढ़ाने का मन नहीं करता,
कभी सुखी चादरें बदन के लिपटने से भीग जाती है,
यार उस रात बत्तियां जलने का मन नहीं होता,
दो नावों पर पाँव पसारे, ऐसे कैसे? वो भी प्यारा हम भी प्यारे, ऐसे कैसे? सूरज बोला बिन मेरे दुनिया अंधी है हँसकर बोले चाँद-सितारे, “ऐसे कैसे...
No comments:
Post a Comment