या किस बात को लेकर मेरे मन में उलझन है, कौन-सी बात में बार-बार सोच रहा हूँ...
तुम्हें तब हर बार यही प्रतीत हुआ कि शायद मैं तुमसे बहस कर रहा हूँ,
या कोई अनचाही लड़ाई छेड़ना चाहता हूँ।
पर वास्तविकता तो ये थी कि
मैं बस इतना चाहता था कि तुम समझो...
कि मेरे भीतर क्या चल रहा है,
मैं किन भावनाओं से गुज़र रहा हूँ।
कभी-कभी इंसान लड़ना नहीं चाहता,
वो सिर्फ चाहता है कि कोई उसके मन की आवाज़ सुने...
बिना उसे गलत समझे।
मगर, काश, किंतु, परन्तु,अफसोस
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