चर्रर्र... दरवाज़े पर कोई आहट सी महसूस हुई तो एक झटके में उसने ताहिर का हाथ
अपने कंधे से झटक दिया. ‘‘...लगा जैसे कोई दरवाज़े की ओट में खड़ा हो!’’
‘‘अरे यार आओ न ! मूड मत ख़राब करो... वहम है तुम्हारा...’’
‘‘...हम्म्म पर डर तो रहता ही है. वैसे दरवाज़ा तो लॉक है...’’ शायद यह शब्द माया
ने अपना ही वहम दूर करने के लिए कहे थे, लेकिन उसका मन शंका से घिर गया.
फिर उसे पदचाप
भी सुनाई दी. इस आवाज़ से आतंकित हो उठी थी वह. शायद कुछ टूटा था. अगले ही पल वो ताहिर
को खुद से दूर धकेलती हुई, बाहर की ओर दौड़ी !
हां, मेरा शक़ सही
था. नितिन ही हैं, पर इस वक़्त तो वो अपने ऑफ़िस में होते हैं... उफ़्फ़! अब
क्या होगा? कहीं उन्होंने...नहीं, नहीं.. हे ईश्वर! मैं ख़ुद ही अपने संसार को बिखेर रही
थी... मौक़े की नज़ाकत समझकर ताहिर ने भी खिसकने में ही भलाई समझी.
माया के मन में
आतंक की तीव्रता इतनी प्रचंड हो गई कि वह वहीं बुत बन गई! हाथ-पैर जैसे सुन्न होते
जा रहे थे. धीरे-धीरे माया की स्थिति ख़राब होती गई. डबडबाई आंखों से झरने बहने
लगे तो सिसकियां विलाप में बदल गईं.
कैसे वह इतना
अनियंत्रित हो सकती है? क्या करने जा रही थी वो? नितिन को खोने के डर से
उसका दम घुटा जा रहा था! घंटों मन में तूफ़ान हलचल करता रहा.
उसे याद आ रहा
था वो अपने प्रेमी नितिन से कितना प्यार करती थी. जैसे जैसे मुलाकातों को समय
बीतता गया प्यार का यह स्रोत धीमा होते-होते खो-सा गया. इसकी कोई बड़ी वजह तो नहीं
थी...बस, छोटी-छोटी बातें थीं, जैसे: नितिन का अपने काम में व्यस्त से व्यस्ततम होते जाना,
सामान्य-सी
बातों को भी खीझ कर कह देना, एक ही बात को बार-बार कहने पर भी उसे भूल जाना, उसके बन संवरकर
आने पर न तो इस ओर ध्यान देना और ना ही कोई तारीफ़ करना. जीवन में जैसे कुछ नया और
रूमानी घटित ही नहीं हो रहा था. एक ही ढर्रे पर चलता हुआ जीवन...उकताने लगी थी वह.
जब से नया काम सूरी
हुआ है नितिन ऑफ़िस में व्यस्त और वह ऑफिस के काम के हमारे बीच की अंतरंगता नाममात्र की ही बची
रही थी उनके बीच. इसी बीच अपने साथ काम करने वाले ताहिर का मौन आमंत्रण उसे अपनी
ओर खींचता चला गया. चाहकर भी वह उसके बारे में सोचना बंद नहीं कर पाती थी, क्योंकि वह जो
भी पहने उसकी जी भर कर तारीफ़ करता था ताहिर. उसके मुंह से कोई बात निकलती नहीं थी
कि ताहिर उसे पूरा करने की शुरुआत कर देता. प्रेमी की ओर से मिली रिक्तता यूं भर
रही थी. और आज... यदि नितिन न आया होता तो... तो शायद वह एक और सीमा लांघ जाती...
मन में उठे
तूफ़ान को माया रोक नहीं पा रही थी. उसने तो बहुत कोशिश भी की थी नितिन को यह
बताने की कि उन दोनों को ज़्यादा समय साथ बिताना चाहिए पर... बुत बनी बैठी माया को
आज किसी चीज़ की जल्दी नहीं है... न तो फटाफट खाना पकाने की, न वॉशिंग मशीन से कपड़े
निकालकर सुखाने की, न घर साफ़ करने की और न किसी से बात करने की.. वह तो आज बस,
नितिन की हो
जाना चाहती...अपने नितिन की, जिसकी होते हुए भी उससे दूर हो गई थी...
समय काटे नहीं
कट रहा था. और वो इस उहापोह में थी कि क्या कहेगी नितिन से? आख़िर उसने सोचा,‘नितिन की दी हर
सज़ा क़ुबूल होगी उसे, पर वह अपना घर बिखरने नहीं देगी.’ यह तय करते ही माया ने नितिन
के ऑफ़िस जाने का निर्णय ले लिया. शहर का कारोबारी नितिन अपने ऑफ़िस में बैठा अपने लैपटॉप पर काम
कर रहा था. माया को अचानक आया देख उसने पूछा,‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है?’’
यह पूछकर उसने
अपनी नज़रें फिर लैपटॉप पर टिका दीं.
नितिन को यूं
शांत देखकर माया को और भी बेचैनी होने लगी.
‘‘तुम्हें कुछ
कहना है मुझसे?’’ माया ने पहल की.
‘‘नहीं तो...किस
बारे में?’’ पहले की तरह ही काम करता रहा वह.
‘‘वो...सुबह...” माया
आगे बोल ही नहीं पाई. दिल डूबा जा रहा था उसका. उसने मन ही मन सोचा कहीं यह तूफ़ान
आने से पहले की शांति तो नहीं?
‘‘ओहहह... हां,
सॉरी, सुबह जल्दी में
था. एक ज़रूरी मीटिंग थी इसलिए तुम पर ख़ामख़ां नाराज़ हो गया था,’’ नितिन ने काम
करते करते ही कहा.
‘‘नहीं, मैं उसके बाद
की बात कर रही हूं. सॉरी...वो...’’ आंसू आंख की कोरों पर उतर आए माया के.
वो आगे कुछ
कहती इससे पहले ही दरवाज़े पर नितिन के एक एम्प्लॉई ने दस्तक दी और वह रुक गई.
एम्प्लॉई के जाते ही नितिन ने कहा,‘‘सॉरी? क्यों? तुम्हारी भी क्या ग़लती, जब प्रेमी लापरवाह हो तो यह
तो होगा ही.’’
इतना सुनते ही माया
रोने लगी. ‘‘माफ़ कर दो मुझे...मैं...मैं...’’
‘‘माफ़? भई क्यों ?
इन बातों के
लिए...इन छोटी-छोटी सी बातों के लिए माफ़ी?’’ नितिन ने उसकी बात बीच में
ही काट दी.
‘‘पर...’’
‘‘पर क्या?
इट्स ओके. जो
तुम्हें सही लगा, तुम ने किया.’’
‘‘पर मैं...कहना
चाह रही थी कि...वो...जब तुम आए...उस समय...’’
‘‘मतलब तुम्हें
पता चल गया कि मैं आया था...’’ नितिन ने माया की तरफ़ निगाह भर देखा तो माया डर
गई. ‘‘असल में मैं आया तो था, पर एक अर्जेंट कॉल आ गया तो घर के अंदर आए बिना ही चला
गया... उन्हीं के काम में लगा हुआ हूं,’’ नितिन ने बात पूरी की.
अब तक नज़रें झुकाए खड़ी थी माया. यह सुनते ही उसने नितिन के चेहरे की ओर देखा.
नितिन अब भी अपने लैपटॉप में तल्लीन था. पर माया को तो जीवन मिल गया था. अब जाकर
उसकी जान में जान आई. पर उसका खिन्न मन अब कहां आपे में रहनेवाला था. आंखों में
आंसू की बड़ी-बड़ी बूंदें लिए वो नितिन की ओर बढ़ी और उसके गले लग कर सिसकने लगी.
‘‘ये क्या है?’’
नितिन आश्चर्य
से बोला.
‘‘कुछ नहीं,
थोड़ा-सा प्यार,’’
यह कहते
हुए माया ने
धीरे से नितिन के गाल पर किस कर दिया.
‘‘अरे! ये क्या
कर रही हो? ऑफ़िस है यह...’’
‘‘तुम ही हमेशा
बोलते थे ना कि, प्यार के बाद कभी
भी मैंने तुम्हें प्यार से सबके सामने गले नहीं लगाया. तो लो आज तुम्हारी इच्छा
पूरी कर दी. अब दोबारा मत बोलना कि मैं तुम्हारी बात नही सुनती.’’ माया का चेहरा
अचानक खिल गया था. माया का सालों पुराना, शरारतभरा रूप देखकर नितिन के चेहरे पर
रूमानियत आ गई. उसे कभी नहीं लगा था कि माया सब के बीच कभी ऐसा कुछ कर जाएगी.
मामूली-सी तो कहासुनी हुई थी सुबह. उसे समझ नहीं आया कि कैसे रिऐक्ट करे. उसने माया
का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बोला,‘‘सब ठीक है ना?’’
अचानक नितिन ने
लैपटॉप शटडाउन किया और बोला,‘‘चलो चलते हैं. आज डिनर बाहर करेंगे.’’
जब नितिन कार
पार्क करके रेस्तरां के अंदर आया तो डाइनिंग टेबल पर छोटा-सा केक और वाइन की बॉटल
देखकर उसने कहा,‘‘भई, ना तो आज किसी का बर्थ डे है और ना ही सालगिरह तो आख़िर आज
है क्या, जो हमारी जान इतनी रोमैंटिक हो रही हैं?’’
‘‘आज का ये पल
सिर्फ़ मेरा और तुम्हारा है.’’
‘‘अच्छा, ऐसा क्या हुआ?
झगड़े तो पहले
भी हुए हैं हमारे बीच. पर आज इसका परिणाम इतना अलग क्यों?’’
‘‘भूल गए ना?
आज ही के दिन,
हमने एक दूसरे
को पसंद किया था! और तुमने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि मैंने आज तुम्हारे
पसंद के सलवार सूट पहनी है. और तो और तुमने मेरी बिंदी भी नहीं देखी. तुम्हें तो
मेरा अलग अलग स्टाइल की बिंदी लगाना बहुत पसंद है ना?’’ बच्चों की तरह शिकायत किए
जा रही थी माया.
‘‘अच्छा जी,
तो असल बात यह
है. तभी आज इतना प्यार आ रहा है. मैं सोच तो रहा था कि कुछ अलग लग रही हो तुम
आज...पर कहा नहीं. हम्म्म... इतने साल हो गए. पहले मुझे याद रहता था, पर
फिर...ज़िंदगी की इस आपाधापी में सब भूल गया. अच्छी बात ये है कि तुम्हें तो याद
रहा...’’
‘‘तुमने मुझपर
ध्यान देना छोड़ दिया तो अब सोचा है, क्यों न मैं ही तुमपर ज़्यादा ध्यान देने लगूं?’’
कहते कहते माया
का गला रुंध गया.
‘‘कैसे निकल जाता
है न वक़्त, पता ही नहीं चलता. प्यार , जॉब... फिर अपना काम और देखो 12 साल हो गए
और... माया, मैं सब कुछ तुम्हारे लिए ही तो करता हूं. सच्ची बताना, तुम मेरे साथ ख़ुश तो हो न?’’
नितिन ने प्यार
से अपना हाथ माया के हाथ पर रखा तो माया रोने लगी. बोली,‘‘आज से मैं तुम्हें कभी
परेशान नहीं करूंगी और ना ही लड़ूंगी. पहले तो हम तुम एक दूसरे का ध्यान रखते थे,
पर धीरे-धीरे
सब छूट गया. तुम्हें और मुझे कुछ याद रहा तो सिर्फ़ अपनी अपनी ज़िम्मेदारी. इस सब
में हम एक-दूसरे को भूल ही गए. तुम जैसे कि मेहमान की तरह हो गए... मैं इतना उलझ
गई कि... और जो कभी मैंने अपना ग़ुस्सा या फ्रस्ट्रेशन तुम पर निकाला भी तो तुम
उसे सुनने या मुझे समझाने के बजाय चुप रहने लगे. फिर... मैं कभी...परेशान हो कर
रोती तो तुम करवट बदल कर सो जाते. पर इस बार मैं इसे अलग तरीक़े से संभालूंगी.
तुमको पता है न मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं रह सकती? हम दोनों केवल दोस्त हैं
इसलिए नहीं, बल्कि एक-दूसरे से प्यार करते हैं इसलिए एक छत के नीचे रह रहे हैं, है ना? तो मैंने सोचा
और ख़ूब सोचा कि इस बार मैं पहल करूंगी और अब तुमसे कोई शिकायत नहीं करूंगी.’’
‘‘अरे छोड़ो इन बातों को. आज से लाइफ़ फिर से एंजॉय करते हैं. चलो केक काटो. आओ
नई शुरुआत करते हैं,’’ नितिन के चेहरे पर पहले जैसी ताज़गी थी आज.
‘नितिन ने कहा,‘‘हां, बिल्कुल. आप तो
सबसे ख़ास हैं. हमारी लाइफ़ लाइन हैं.’’
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