मुझे मालूम है मैं मरूंगा,
चिंता इस बात की है की मौत से मैं डरूंगा कब,
और सोचा था किसी दिन उससे दिल की बात करूंगा,
अब जब मरने वाला हूं तो उससे बात करूंगा कब,
मुझे उस रात को वो तुम्हारे मखमली हाथ को छूना नहीं था,
तुम्हें ही गले लगा कर तुम्हारे लिए ही रोना नहीं था,
मैं जानता हूं, कि मेरे मन का वहम, रात का कभी सच ना होने वाला सपना था,
पर कुछ पल के लिए ऐसा लगा कभी अपना न होने वाला शख्स ,
उस रात को अपना था,
फिर क्या हुआ "रस्क",
फिर क्या हुआ सपना था, टूट गया ,पहले सच में रूठा था ,
अब सपने में भी रूठ गया,
उसका यूं ही मुझसे रूठ जाना मुझको मुनासिब सा लग नहीं,
उसको मैं आवारा लगा उसके पीछे पड़ा कोई आशिक लगा नहीं,
अच्छा, वो आखिरी दिन उसने मुझसे शर्त रखी ,
तुम्हें मुझे भूलना पड़ेगा मैं तुम्हें याद नहीं रखूंगी,
मैं नजरअंदाज कर दूंगी, तुमको निकलोगे कहीं से मेरी जान
मुझे मालूम है मैं मरूंगा कब,
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