अपने बदन से कुचल दे मेरे जिस्म को
अपनी पकड़ के निशान छोड़ दे,
थोड़ा तो एहसास करा अपने वजन का,
थोड़ा हल्का सा दर्द मुझे और दे,
ना गिरा एक बूंद भी बाहर,
तू अंदर तक सारा भर मुझे,
मेरी इज्जत बड़ी है तेरे दिल में,
पर बिस्तर में बेइज्जत कर मुझे,
बातचीत कर थोड़ा सा चीख कर,
पहले बाल संवार मेरे फिर मार खींचकर,
समझ कर इसको मोहब्बत की कहानी,
इस पल को तू जीता जा,
मेरे पेट के नीचे बहती है एक नदी,
तू जीभ लगाकर पानी पीता जा,
नदी के नाजुक दो दरवाजा के बीच,
तू घिसता जा, तू घिसता जा,
नदी में जड़ा है चिराग एक,
वह तू अपनी छड़ी से घिसता जा,घिसता जा,
बेशक नहीं निकलेगा इससे कोई जिन्न,
ऐ मेरे अलादीन,
पी ये निकलता सफेद और घिसता जा,
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